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नज़्म
मदद करनी हो उस की यार की ढारस बंधाना हो
बहुत देरीना रस्तों पर किसी से मिलने जाना हो
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
वो धीमे लहजे वाला था और धीरे से हँसता था
जितने भी लोग मिले हम को सच जानो सब से अच्छा था
फ़हमीदा रियाज़
नज़्म
सब जान के सपने देखते हैं सब जान के धोके खाते हैं
ये दीवाने सादा ही सही पर इतने भी सादा नहीं यारो
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
आख़िर उस पर क्या कुछ बीती जानो तो अहवाल कहो
मौत मिली या लैला पाई? दीवाने का मआल कहो
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
'कृष्ण' की बंसी ने फूंकी है रूह हमारी जानों में
'गौतम' की आवाज़ बसी है महलों में मैदानों में