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नज़्म
सो ज़ाहिर है इसे शय से ज़ियादा मानता हूँ मैं
तुम्हें हो सुब्ह-दम तौफ़ीक़ बस अख़बार पढ़ने की
जौन एलिया
नज़्म
अन-पढ़ था और जाहिल क़ाबिल मुझे बनाया
दुनिया-ए-इल्म-ओ-दानिश का रास्ता दिखाया
अहमद हातिब सिद्दीक़ी
नज़्म
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
गरचे जाहिल हूँ पर इतना जानता हूँ कम से कम
सारी दुनिया में अगर कुछ है तो इंसाँ का शिकम
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
ये डर है मैं जो बड़ा हो के भी रहा जाहिल
न मार दे मेरे मुँह पर समाज दो थप्पड़
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
हुकूमत में सभी अहल-ए-हुनर के क़द्र-दाँ होंगे
जो जाहिल हैं वसाइल से न अपने कामराँ होंगे
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
शबनम कमाली
नज़्म
वो आलिम हो कि जाहिल आज हर दिल पर हुकूमत है
नज़र-अंदाज़ करना उस की राहों को क़यामत है