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नज़्म
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
तुम्हें जो पा के ख़ुशी है तुम उस ख़ुशी पे न जाओ
तुम्हें ये इल्म नहीं किस क़दर उदास हूँ मैं
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
अपनी दुनिया-ए-हसीं दफ़्न किए जाता हूँ
तू ने जिस दिल को धड़कने की अदा बख़्शी थी
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
अरसा-ए-दहर पे सरमाया ओ मेहनत की ये जंग
अम्न ओ तहज़ीब के रुख़्सार से उड़ता हुआ रंग
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
सेहन-ए-चमन पर भौउँरों के बादल एक ही पल को छाएँगे
फिर न वो जा कर लौट सकेंगे फिर न वो जा कर आएँगे
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
ख़ैर अब हम मुतमइन यूँ हैं कि जान-ए-आरज़ू
हम ने कुछ खो भी दिया है और कुछ पाया भी है
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
ऐ 'सबा' ऐ ख़ामा-बरदार-ए-गुलिस्तान-ए-अदब
बिन तिरी शिरकत के महफ़िल में बनी है बात कब
सफिया अंकोलवी
नज़्म
यहीं पे शैख़-ए-अदब अपनी राह भूलते हैं
यहीं तो शैख़-ए-अदब 'इज़्ज़-ओ-जाह भूलते हैं