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नज़्म
देख कर तेरे सितम ऐ हामी-ए-अम्न-ओ-अमाँ
गुर्ग रह जाते हैं दाँतों में दबा कर उँगलियाँ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
दीन है उस का मोहब्बत उस की दुनिया शायरी
है तशद्दुद का मुख़ालिफ़ हामी-ए-अम्न-ओ-अमाँ
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
जारहिय्यत चीन की अब हो गई सब पर अयाँ
सारी दुनिया कह उठी है दुश्मन-ए-अम्न-ओ-अमाँ
तकमील रिज़वी लखनवी
नज़्म
कोई तो हक़ की किरन फूटे ज़ुल्म की शब में
निगाह-ए-अम्न-ओ-अमाँ तिश्ना-बार है अब तक
अनीस अहमद अनीस
नज़्म
हर सितम पर की बुलंद इस ने सदा-ए-एहतिजाज
बन के इक पैग़म्बर-ए-अम्न-ओ-अमाँ बढ़ता गया