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नज़्म
तुम्हें जो पा के ख़ुशी है तुम उस ख़ुशी पे न जाओ
तुम्हें ये इल्म नहीं किस क़दर उदास हूँ मैं
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
अरसा-ए-दहर पे सरमाया ओ मेहनत की ये जंग
अम्न ओ तहज़ीब के रुख़्सार से उड़ता हुआ रंग
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
सेहन-ए-चमन पर भौउँरों के बादल एक ही पल को छाएँगे
फिर न वो जा कर लौट सकेंगे फिर न वो जा कर आएँगे
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
कैसे कैसे अक़्ल को दे कर दिलासे जान-ए-जाँ
रूह को तस्कीन दी है दिल को समझाया भी है