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नज़्म
फ़र्ज़ करो हम अहल-ए-वफ़ा हों, फ़र्ज़ करो दीवाने हों
फ़र्ज़ करो ये दोनों बातें झूटी हों अफ़्साने हों
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
ये वो गुलशन है जिस में फूल खिलते हैं अहिंसा के
इसी की गोद ने पुर-अम्न इंसानों को पाला है
वफ़ा सिद्दीक़ी
नज़्म
आज तो हम बिकने को आए, आज हमारे दाम लगा
यूसुफ़ तो बाज़ार-ए-वफ़ा में, एक टिके को बिकता है
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
फीका है जिस के सामने अक्स-ए-जमाल-ए-यार
अज़्म-ए-जवाँ को मैं ने वो ग़ाज़ा अता किया
आल-ए-अहमद सुरूर
नज़्म
यही वो मंज़िल-ए-मक़्सूद है कि जिस के लिए
बड़े ही अज़्म से अपने सफ़र पे निकले थे
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
वो भी कहते हैं कि इस जिंस-ए-वफ़ा की क़ीमत
जिस क़दर मिलती है ज़र्रे के भी हम संग नहीं
शिबली नोमानी
नज़्म
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
शौकत-ए-किसरा ओ शान-ए-जम तो दरबारों में है
जिंस-ए-नायाब-ए-वफ़ा भी तेरे बाज़ारों में है