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नज़्म
वो सूद-ए-हाल से यकसर ज़ियाँ-काराना गुज़रा है
तलब थी ख़ून की क़य की उसे और बे-निहायत थी
जौन एलिया
नज़्म
मदद करनी हो उस की यार की ढारस बंधाना हो
बहुत देरीना रस्तों पर किसी से मिलने जाना हो
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
इस कुंज-ए-दिल-नशीं में क़ब्ज़ा न हो ख़िज़ाँ का
जो हो गुलों का तख़्ता तख़्ता हो इक जिनाँ का
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
ब्याही जाती हूँ क़ुरआन से भी मैं यहाँ अब तक
कि ज़िंदा है यहाँ पर कारोबारी का जहाँ अब तक
ज़ेबुन्निसा ज़ेबी
नज़्म
महव-ए-गुल-गश्त जहाँ हूर-ए-बहिश्ती मिल जाए
क़ाबिल-ए-रश्क वो गुलज़ार-ए-जिनाँ है उर्दू