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नज़्म
धूप में साया भी होता है गुरेज़ाँ जिस दम
तेरी ज़ुल्फ़ें मिरे शानों पे बिखर जाती हैं
हिमायत अली शाएर
नज़्म
हुआ वक़्त गुड़िया की रुख़्सत का जिस दम
जमीला के चेहरे पे था ग़म का आलम