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नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
साक़ी फ़ारुक़ी
नज़्म
मदद करनी हो उस की यार की ढारस बंधाना हो
बहुत देरीना रस्तों पर किसी से मिलने जाना हो
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
मैं ने काल को तोड़ के लम्हा लम्हा जीना सीख लिया
मेरी ख़ुदी को तुम ने चंद चमतकारों से मारना चाहा
गुलज़ार
नज़्म
ग़म अपना नहीं ग़म इस का है कल जाने तुम्हारा क्या होगा
परवान चढ़ोगी तुम कैसे जीने का सहारा क्या होगा
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
सैंकड़ों पाँव कटे तब कहीं इक ज़ीना बना
तेरे क़दमों के तले या मिरे क़दमों के तले