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नज़्म
रात की तारीकियों में दिल बहलता था कभी
पुर-ख़तर वीरानियों में मैं टहलता था कभी
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
नज़्म
वो काले काले गेसू सुर्ख़ होंट और फूल से आरिज़
नगर में हर तरफ़ परियाँ टहलती हैं बहारों की
नज़ीर बनारसी
नज़्म
बाग़ से टलता नहीं कम्बख़्त माली हाए हाए
तोड़ कर ख़ूबानियाँ खाने की हसरत है तो है