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नज़्म
चिल्ला ग़म ठोंक उछलता हो तब देख बहारें जाड़े की
तन ठोकर मार पछाड़ा हो और दिल से होती हो कुश्ती सी
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
ठोंक दी जाएगी अब शायद सभी ज़ेहनों में कील
उठ रही है हर तरफ़ जलते अँधेरों की फ़सील
चन्द्रभान ख़याल
नज़्म
तेरे क़ब्ज़े में है गर्दूं तिरी ठोकर में ज़मीं
हाँ उठा जल्द उठा पा-ए-मुक़द्दर से जबीं
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
मैं अशराफ़-ए-कमीना-कार को ठोकर पे रखता था
सो मैं मेहनत-कशों की जूतियाँ मिम्बर पे रखता था
जौन एलिया
नज़्म
हर बात की खोज तो ठीक नहीं तुम हम को कहानी कहने दो
उस नार का नाम मक़ाम है क्या इस बात पे पर्दा रहने दो
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
ये तुम ने ठीक कहा है तुम्हें मिला न करूँ
मगर मुझे ये बता दो कि क्यूँ उदास हो तुम