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नज़्म
इक दिन फिर भी तुम्हारे साथ इस ख़ाक के तख़्ते तक जाऊँगा
जिस से ढके हुए बे-नूर गढ़ों में
मजीद अमजद
नज़्म
सब्ज़े से ढकी पहाड़ियाँ कितनी भी हसीन हों
सोने से ढकी पहाड़ियों की बात ही अलग है
मोहम्मद हनीफ़ रामे
नज़्म
आँख की ख़स्ता फ़सीलों से गिरे ख़िश्त-मिज़ाज
उन चुने ज़र्द गुलों से ढके कुछ सोख़्ता पल