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नज़्म
दाने दाने को तरस जाता है दानों में घिरा
मुश्त-ए-पर ख़ाक में ढल जाती है रफ़्ता रफ़्ता
ख़ुर्शीद रिज़वी
नज़्म
हमें डसती हुई तन्हाइयाँ दे कर गुज़र जाएँ
ढलक जाता है इक इक पल पे सर से रेशमी आँचल
क़ैसर-उल जाफ़री
नज़्म
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
रह रह कर सारी का आँचल काँधे पर से ढलक जाता था
रह रह कर तुझ से कुछ कहने को मेरा जी ललचाता था
तख़्त सिंह
नज़्म
ढल चुकी रात बिखरने लगा तारों का ग़ुबार
लड़खड़ाने लगे ऐवानों में ख़्वाबीदा चराग़