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नज़्म
ग़रीबी तंग-दस्ती में क़नाअत है बग़ावत है
न दौलत है न राहत है न इज़्ज़त है बग़ावत है
बशीरुद्दीन राज़
नज़्म
तुम हमारे सभी फ़लसफ़े जिस्म के ज़ावियों पर परखते रहे
तुम तो दस्त-ए-हुनर का तराशीदा फ़न छोड़ कर
शहला कलीम
नज़्म
फ़ाक़ा-मस्ती में बिखरते हुए सारे रिश्ते
तंग-दस्ती के सबब सारी फ़ज़ाएँ बेहाल