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नज़्म
या छोड़ें या तकमील करें ये इश्क़ है या अफ़साना है
ये कैसा गोरख-धंदा है ये कैसा ताना-बाना है
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
जो कुछ रह-ए-उल्फ़त में 'तकमील' पे गुज़री है
अफ़्साना-दर-अफ़्साना तहरीर करो यारो
तकमील रिज़वी लखनवी
नज़्म
क़फ़स का दर बना देते हैं रश्क-ए-बाब-ए-आज़ादी
जो अहल-ए-होश हैं 'तकमील' ज़िंदानों में रहते हैं
तकमील रिज़वी लखनवी
नज़्म
क़ाफ़िले वालों को मंज़िल का पता मिल जाएगा
जबकि ऐ 'तकमील' नेहरू हैं अमीर-ए-कारवाँ
तकमील रिज़वी लखनवी
नज़्म
और हैं तकमील-ए-आज़ादी के चर्चे चार-सू
एक दिन बन जाएगा ये मुल्क जन्नत हू-बहू