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नज़्म
ब-मुश्ताक़ाँ हदीस-ए-ख़्वाजा-ए-बदरौ हुनैन आवर
तसर्रुफ़-हा-ए-पिन्हानश ब-चश्म-ए-आश्कार आमद
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सियह, मार जैसे, चमकते हुए काले बालों
पे ऐसी सपीदी उमँड आएगी कुछ तदारुक नहीं जिस का कोई
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
रिवाज इस का जहाँ की वुसअतों में बे-तकल्लुफ़ है
ये पाकीज़ा ज़बाँ है और लतीफ़ इस का तसर्रुफ़ है
अलम मुज़फ़्फ़र नगरी
नज़्म
तेरे ग़म में आज भी जान-ए-सुख़न काहीदा है
है तसर्रुफ़ तेरा पैदा और तू पोशीदा है
मोहम्मद सादिक़ ज़िया
नज़्म
है तसर्रुफ़ में तिरे दहर की हर चीज़ 'रज़ी'
उठ और उठ कर इन्हीं ज़र्रों से क़मर पैदा कर