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नज़्म
कभी सरसर से तल्ख़ी का सबब पूछा मतानत से
कभी तरजीह दी ख़ाक-ए-चमन पर रेग-ए-सहरा को
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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कभी सरसर से तल्ख़ी का सबब पूछा मतानत से
कभी तरजीह दी ख़ाक-ए-चमन पर रेग-ए-सहरा को
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