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नज़्म
कब तक दिल की ख़ैर मनाएँ कब तक रह दिखलाओगे
कब तक चैन की मोहलत दोगे कब तक याद न आओगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
तिरे पूरे बदन पर इक मुक़द्दस आग का पहरा है
जो तेरी तरफ़ बढ़ते हुए हाथों के नाख़ुन रोक लेता है
तहज़ीब हाफ़ी
नज़्म
मुद्दआ तेरा अगर दुनिया में है ता'लीम-ए-दीं
तर्क-ए-दुनिया क़ौम को अपनी न सिखलाना कहीं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जलाना छोड़ दें दोज़ख़ के अंगारे ये मुमकिन है
रवानी तर्क कर दें बर्क़ के धारे ये मुमकिन है
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
सीरत-ए-नबवी, तर्क-ए-दुनिया और मौलवी-साहब के हलवे मांडे में क्या रिश्ता है?
दिन तो उड़ जाते हैं
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
कैफ़-ए-सहबा-ए-तरब में ग़र्क़-ए-मय-ख़ाना है आज
हर शजर साक़ी-ए-मय हर फूल पैमाना है आज