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नज़्म
यहीं की थी मोहब्बत के सबक़ की इब्तिदा मैं ने
यहीं की जुरअत-ए-इज़हार-ए-हर्फ़-ए-मुद्दआ मैं ने
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
तबीअत अब तो है आमादा-ए-तर्क-ए-ग़ज़ल-ख़्वानी
चे रा कारी कुनद आक़िल कि बाज़ आयद पशेमानी
असद जाफ़री
नज़्म
ज़ौक़-ए-सफ़र घटा न दे लोग कहें जो ना-समझ
हासिल-ए-मुद्दआ को भी परतव-ए-मुद्दआ समझ
अली मंज़ूर हैदराबादी
नज़्म
हक़ीक़त का तक़ाज़ा है हो दिल को जुस्तुजू पहले
हुसूल-ए-मुद्दआ को चाहिए कुछ आरज़ू पहले