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नज़्म
नैना आदिल
नज़्म
दिल ओ जाँ और आसाइश ये इक कौनी तमस्ख़ुर है
हुमुक़ की अबक़रिय्यत है सफ़ाहत का तफ़क्कुर है
जौन एलिया
नज़्म
तो ऐसे लगता था जैसे दिल में उतर रही हो
कुछ इस तयक़्क़ुन से बात करती थी जैसे दुनिया
अमजद इस्लाम अमजद
नज़्म
वो ख़मोशी शाम की जिस पर तकल्लुम हो फ़िदा
वो दरख़्तों पर तफ़क्कुर का समाँ छाया हुआ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
'हाफ़िज़' के तरन्नुम को बसा क़ल्ब-ओ-नज़र में
'रूमी' के तफ़क्कुर को सजा क़ल्ब-ओ-नज़र में
जगन्नाथ आज़ाद
नज़्म
क्या तवक़्क़ो उन से रक्खें फ़ेल जो होते रहे
नक़्ल कर के दाग़ को दामन से जो धोते रहे