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नज़्म
सौदा है लीडरी का जो दिल को सताए है
''दिल फिर तवाफ़-ए-कू-ए-मलामत को जाए है''
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
दिमाग़ अपना क़दम रखते ही पहूँचा अर्श-ए-आ'ला पर
ज़मीन-ए-कू-ए-जानाँ आसमाँ मालूम होती है