aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "ताज़ा-तरीन"
सत्ह-ब-सत्ह सब सदफ़ नूर की रौ अज़ीम हैताज़ा तरीन ये जहाँ ताज़ा नुजूम व आसमाँ
देखो अभी है वादी-ए-कनआँ निगाह मेंताज़ा हर एक नक़्श-ए-कफ़-ए-पा है राह में
मैं घास हूँहरी-भरी घास
जहाँ में हर तरफ़ है इल्म ही की गर्म-बाज़ारीज़मीं से आसमाँ तक बस इसी का फ़ैज़ है जारी
तीन हमारी बहनें छोटीमिल कर खाएँ आधी रोटी
सुना है उस ने पढ़ते पढ़तेआँखों को हैरान किया है
ऐ तीन चेहरों मेंरौशन पेशानी वाले
रात की सा'अतों के जंगल मेंसादा काग़ज़ से खेलती उँगली
वो दो हो तीन हो या चार-हर्फ़ीसभी अल्फ़ाज़ गोया ताज़ा बर्फ़ी
मैंरोज़ाना एक सौ रूपे उजरत का मुलाज़िम हूँ
न इस का पुजारी न उस का नमाज़ीनज़र उस की होती नहीं इम्तियाज़ी
बुद्धा 'अज़ीम शख़्स थाजो तख़्त-ओ-ताज छोड़ कर
सुब्ह के तीन बजने वाले हैंनींद है दूर मेरी आँखों से
मैं उस वक़्त कितने बरस की थी अब याद आता नहींबरस तीन समझो कि चार
चीख़ें सुन कर दौड़ा आयातीन बरस का था जब मैं ने
वो बारगह-ए-ख़ास की पाकीज़ा इमारतताबाँ थे जहाँ नय्यर-ए-शाही-ओ-वज़ारत
जब तक अदब-बरा-ए-अदब का रहा ख़यालअदबार-ओ-मुफ़लिसी से रहे हम शिकस्ता-हाल
गुलाबी दौर मेंवो अपने फ़न का शाहज़ादा था
1वो अज़ल से अपने अज़ीम चाक पे
ज़िक्र नहीं ये फ़र्ज़ानों काक़िस्सा है इक दीवानों का
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