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नज़्म
तड़प सेहन-ए-चमन में आशियाँ में शाख़-सारों में
जुदा पारे से हो सकती नहीं तक़दीर-ए-सीमाबी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जोश मलीहाबादी
नज़्म
यहाँ से दोस्ती की कितनी तामीरें उठाई हैं
रफ़ाक़त की हयात-अफ़रोज़ दुनियाएँ बसाई हैं
अब्दुल अहद साज़
नज़्म
मिल-जुल के करेंगे गर मेहनत हो जाएगा हर सपना पूरा
हिम्मत से हुई हैं तामीरें जुरअत से हुआ है काम नया
शौकत परदेसी
नज़्म
नुशूर वाहिदी
नज़्म
वो जिन में मुल्क-ए-बर्क़-ओ-बाद तक तस्ख़ीर होता है
जहाँ इक शब में सोने का महल तामीर होता है
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
आसफ़ुद्दौला-ए-मरहूम की तामीर-ए-कुहन
जिस की सनअ'त का नहीं सफ़्हा-ए-हस्ती पे जवाब
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
है हमारी मंज़िल-ए-मक़्सूद ता'मीर-ए-वतन
कारवाँ अब तक हमारा कामराँ बढ़ता गया