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नज़्म
तिलिस्म-ए-बाद-ओ-बाराँ में कोई तूफ़ाँ न होता
मोहब्बत ख़त्म हो जाने का भी इम्काँ न होता
ज़ीशान साहिल
नज़्म
किसी ने तोड़ डाला ये तिलिस्म-ए-कैफ़-ओ-ख़्वाब आख़िर
मिरी आँखों के आगे आए शमशीर ओ शबाब आख़िर
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
जिस की तनवीर ने ज़र्रों को 'अता की ताबिश
जिस की तक़रीर ने तोड़ा है तिलिस्म-ए-ज़र-ओ-सीम
क़मर रईस
नज़्म
सुकून-ए-दीदा-ए-तिश्ना हैं मौजा-हा-ए-सराब
ख़ुदा करे कि न टूटे तिलिस्म-ए-लात-ओ-मनात