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नज़्म
दफ़्न तुझ में कोई फ़ख़्र-ए-रोज़गार ऐसा भी है
तुझ में पिन्हाँ कोई मोती आबदार ऐसा भी है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दफ़्न कर सकता हूँ सीने में तुम्हारे राज़ को
और तुम चाहो तो अफ़्साना बना सकता हूँ में
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
गुज़िश्ता अज़्मतों के तज़्किरे भी रह न जाएँगे
किताबों ही में दफ़्न अफ़्साना-ए-जाह-ओ-हशम होंगे
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
ये काली दीवार जो है नामों का क़ब्रिस्तान
वॉशिंगटन के शहर में दफ़्न हैं किस किस के अरमान
अहमद फ़राज़
नज़्म
दफ़्न कर देगा जो ख़ालिक़ को भी मख़्लूक़ समेत
और ये आबादियाँ बन जाएँगी फिर रेत ही रेत
अहमद फ़राज़
नज़्म
अपनी दुनिया-ए-हसीं दफ़्न किए जाता हूँ
तू ने जिस दिल को धड़कने की अदा बख़्शी थी