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नज़्म
दिल है पहलू में तो पैदा शेवा-ए-तुरकाना कर
जौर हफ़्त-अफ़्लाक के होते रहें परवा न कर
ज़फ़र अली ख़ाँ
नज़्म
इस दरिया से निकली हैं ऐसी प्यारी प्यारी नहरें
दिल को लुभाने वाली हैं जिन की बाँकी बाँकी लहरें