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नज़्म
आह शूदर के लिए हिन्दोस्ताँ ग़म-ख़ाना है
दर्द-ए-इंसानी से इस बस्ती का दिल बेगाना है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आह शूदर के लिए हिन्दोस्ताँ ग़म-ख़ाना है
दर्द-ए-इंसानी से इस बस्ती का दिल बेगाना है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
साज़-ओ-सामान-ए-तरब सब कुछ तिरी महफ़िल में है
दर्द-ए-इंसानी का भी जल्वा किसी के दिल में है
ज़फ़र अहमद सिद्दीक़ी
नज़्म
आदमी मिन्नत-कश-ए-अरबाब-ए-इरफ़ाँ ही रहा
दर्द-ए-इंसानी मगर महरूम-ए-दरमाँ ही रहा
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
कि मैं हूँ वारिस-ए-तारीख़-ए-अस्र-ए-इंसानी
क़दम क़दम पे जहन्नम क़दम क़दम पे बहिश्त
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
ज़मीर-ओ-फ़िक्र-ए-इंसानी की आज़ादी का ख़्वाहाँ हूँ
मैं नस्ल-ओ-रंग-ओ-ख़ूँ के इमतियाज़ों से गुरेज़ाँ हूँ
क़ैसर अमरावतवी
नज़्म
हुस्न के चेहरे पे है नूर-ए-सदाक़त की दमक
इश्क़ के सर पर कुलाह-ए-फ़ख़्र-ए-इंसानी है आज
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ये इंसानी बला ख़ुद ख़ून-ए-इंसानी की गाहक है
वबा से बढ़ के मोहलिक मौत से बढ़ कर भयानक है