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नज़्म
इक ख़ुशबू दर्द-ए-सर की मुरझाई कलियों को खिलाए जाती है
ज़ेहन में बिच्छू उम्मीदों के डंक लगाते हैं
बाक़र मेहदी
नज़्म
न कोई बे-पढ़ा-लिखा न कोई बे-हुनर होगा
न औरों के लिए बे-कार कोई दर्द-ए-सर होगा
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
हूँ गुल-ए-तर कोई या ख़ार-ए-मुग़ीलाँ हूँ मैं
दर्द-ए-सर हूँ कि किसी दर्द का दरमाँ हूँ मैं
ख्वाजा मंज़र हसन मंज़र
नज़्म
साज़ बजते हैं मोहब्बत के दरून-ए-महफ़िल
तू दर-ए-यार के दरबाँ की शक़ावत को न देख
सफ़दर आह सीतापुरी
नज़्म
थे बहुत बेदर्द लम्हे ख़त्म-ए-दर्द-ए-इश्क़ के
थीं बहुत बे-मेहर सुब्हें मेहरबाँ रातों के बा'द