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नज़्म
बर्फ़ ने बाँधी है दस्तार-ए-फ़ज़ीलत तेरे सर
ख़ंदा-ज़न है जो कुलाह-ए-मेहर-ए-आलम-ताब पर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ये दस्तूर-ए-ज़बाँ-बंदी है कैसा तेरी महफ़िल में
यहाँ तो बात करने को तरसती है ज़बाँ मेरी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तू ने दस्तूर-ए-मोहब्बत का उड़ाया है मज़ाक़
क्या ये वहशत तिरी रूदाद की ग़म्माज़ नहीं
बिसमिल देहलवी
नज़्म
दस्तूर-ए-अदालत के लिए उस का क़लम था
फ़रमान-ए-रेआ'या के लिए उस की ज़बाँ थी