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नज़्म
यूँ फ़ज़ाओं में रवाँ है ये सदा-ए-दिल-नशीं
ज़ेहन-ए-शाइर में हो जैसे इक अछूता सा ख़याल
इब्न-ए-सफ़ी
नज़्म
मुझे तेरे तसव्वुर से ख़ुशी महसूस होती है
दिल-ए-मुर्दा में भी कुछ ज़िंदगी महसूस होती है
कँवल एम ए
नज़्म
कब तलक दाग़-ए-दिल एक एक को दिखलाएँ हम
काश हो जाए ज़मीं शक़ तो समा जाएँ हम
मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दा
नज़्म
दिल की न पूछो क्या कुछ चाहे दिल का तो फैला है दामन
गीत से गाल ग़ज़ल सी आँखें साअद-ए-सीमीं बर्ग-ए-दहन
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
अब जब शाम हो गई है तो शराब पीने का मन होता है
मेरे दाग़-ए-दिल में एक चराग़ ऐसा भी है
अमित ब्रिज शॉ
नज़्म
चमकते हुए सब बुतों को मिटा दो
कि अब लौह-ए-दिल से हर इक नक़्श हर्फ़-ए-ग़लत की तरह मिट चुका है
फ़ख़्र-ए-आलम नोमानी
नज़्म
दाग़-ए-दिल 'फ़ारूक़' दिखला कर सर-ए-बज़्म-ए-जमाल
इन को आईना बनाने का ज़माना आ गया