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नज़्म
है दुनिया जिस का नाँव मियाँ ये और तरह की बस्ती है
जो मंहगों को ये महँगी है और सस्तों को ये सस्ती है
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
हर इक मक़ाम है दार-उल-ख़िलाफ़ा-ए-उर्दू
और इस पे लुत्फ़ ये है बे-मक़ाम है उर्दू
ज़किया सुल्ताना नय्यर
नज़्म
देखनी है मुझे हैरानी से तारों की निगाह
दूर उन से भी कहीं दूर मुझे जाना है