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नज़्म
वो ख़ामा-सोज़ी शब-बेदारियों का जो नतीजा हो
उसे इक खोटे सिक्के की तरह सब को दिखाना है
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
अभी तो ज़िंदगी को ज़िंदगी कर के दिखाना है
मुझे जाना है इक दिन तेरी बज़्म-ए-नाज़ से आख़िर
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ग़म-ओ-ग़ुस्सा दिखाना इक दलील-ए-ना-तवानी है
जो हँस कर चोट खाती है उसे ताक़त समझते हैं
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
मिरा इदराक है जो मुझ को मेरे ख़ैर पर होने की मसनद पर बिठाता है
मैं ऐसी हूँ दिखाना चाहती हूँ