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नज़्म
हुस्न का आग़ोश-ए-रंगीं दिल-फ़रेब-ओ-दिलरुबा
इल्म से बन जाए अक़्लीदस का महज़ इक दायरा!
जोश मलीहाबादी
नज़्म
मुर्ग़ान-ए-बाग़ बन कर उड़ते फिरें हवा में
नग़्मे हों रूह-अफ़्ज़ा और दिल-रुबा सदाएँ
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
फ़िक्र-ए-गुनहगारी का ताज़ा दिल-रुबा पैग़ाम था
तेरे ही कूचे में ये सब अहद-ए-वफ़ा तोड़े गए
अली जवाद ज़ैदी
नज़्म
दिलरुबा तेरी अदाएँ ख़ुश-नज़र तेरा जमाल
रौशनी देता है ज़ेहनों को तिरा महर-ए-ख़याल