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नज़्म
उम्र-ए-रफ़्ता के किसी ताक़ पे बिसरा हुआ दर्द
फिर से चाहे कि फ़रोज़ाँ हो तो हो जाने दो
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
दीद तेरी आँख को उस हुस्न की मंज़ूर है
बन के सोज़-ए-ज़िंदगी हर शय में जो मस्तूर है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
उठा होटल का 'पर्दा सामने पर्दा-नशीं आए
जो छुप कर कर रहे थे एहतिराम-ए-हुक्म-ए-दीं आए
मजीद लाहौरी
नज़्म
वो जिस की दीद में लाखों मसर्रतें पिन्हाँ
वो हुस्न जिस की तमन्ना में जन्नतें पिन्हाँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
बीता दीद उम्मीद का मौसम ख़ाक उड़ती है आँखों में
कब भेजोगे दर्द का बादल कब बरखा बरसाओगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ये किन निगाहों ने मिरे गले में बाहें डाल दीं
जहान भर के दुख से दर्द से अमाँ लिए हुए