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नज़्म
दौर-ए-'अफ़लातून'-ओ-'तुलसी-दास' से 'इक़बाल' तक
हिस्ट्री कल शाइ'रों की इस कमेटी ने पढ़ी
रज़ा नक़वी वाही
नज़्म
न वो राज़ की बात होंटों पे लाते हैं
जिस ने मुग़न्नी को दौर-ए-ज़माँ-ओ-मकाँ से निकाला था,
नून मीम राशिद
नज़्म
नग़्मे का दौर, दौर-ए-मय-ओ-रक़्स का मज़ा
जिस को ज़बान कह न सके उस से भी सिवा
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
मिटा देता है दम में नख़वत-ए-नमरूद इक मच्छर
कभी ऐसा भी दौर-ए-गर्दिश-ए-अय्याम आता है
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
रंगीनी-ए-बहार थी जिस दिल में जल्वा-रेज़
अब उस में दौर-ए-फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ है तिरे बग़ैर
शैदा अम्बालवी
नज़्म
मिटा देता है दम में नख़वत-ए-नमरूद इक मच्छर
कभी ऐसा भी दौर-ए-गर्दिश-ए-अय्याम आता है
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
वो चाँदनी की हसीं वादियों में रक़्साँ हैं
वो दौर-ए-पैकर-ए-रूमाँ जुनूँ-ब-दामाँ हैं