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नज़्म
क्यूँ मुसलमानों में है दौलत-ए-दुनिया नायाब
तेरी क़ुदरत तो है वो जिस की न हद है न हिसाब
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हम मु’अर्रा हो के इन औसाफ़ से पस्ती में हैं
दौलत-ए-‘इल्म-ओ-‘अमल खो कर तही-दस्ती में हैं
बर्क़ देहलवी
नज़्म
मुद्द'ई 'इश्क़-ए-हक़ीक़ी का ये रहता है मगर
दौलत-ए-हुस्न-ए-मजाज़ी का ख़रीदार भी है
सय्यद वहीदुद्दीन सलीम
नज़्म
पत्थरों को ज़बाँ तो मिली पर तकल्लुम नहीं
पत्थरों को ख़द-ओ-ख़ाल-ए-इंसाँ मिले दौलत-ए-दर्द-ओ-ग़म कब मिली
वहीद अख़्तर
नज़्म
तुझ से शफ़क़त भी मिली तुझ से मोहब्बत भी मिली
दौलत-ए-इल्म मिली मुझ को शराफ़त भी मिली
मुनव्वर राना
नज़्म
दौलत-ए-फ़क़्र अमीरों में नहीं मिलती अब
फिरते हैं झाँकते दर-दर फ़ुक़रा तेरे बाद