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नज़्म
जाग भी ख़्वाब से ऐ मशरिक़ ओ मग़रिब के हकीम
कि तिरे वास्ते लाया हूँ मैं नज़राना-ए-दिल
जगन्नाथ आज़ाद
नज़्म
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
कोई ईसा-नफ़स देता था नाम-ए-जीस्त नज़राना
लरज़ता इल्तिहाब आगही से था मिरी नज़रों का पैमाना
साजिदा ज़ैदी
नज़्म
आलम की निगाहों से उतरे हुए एवानो
बे-साख़्ता अश्कों का हाज़िर है ये नज़राना
शमीम फ़ारूक़ बांस पारी
नज़्म
बिना-ए-हुर्रियत की उस्तुवारी की थी जब हम ने
सर-ए-'दास'-ओ-भगत-सिंह दे दिए थे क़ब्ल नज़राना
टीका राम सुख़न
नज़्म
उसे अश्कों का नज़राना भी देते हैं
तो मैं मुंसिफ़ का चेहरा देख कर हैरान होता हूँ