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नज़्म
यही सबब है सफ़ीर-ए-लैला मैं याँ से निकला तो कैसे घुटनों के बल उठा था
नसीब-ए-हिजरत को देखता था
अली अकबर नातिक़
नज़्म
वो माह निकला प उस का फ़रोग़ बहर-ए-फ़लक है
नसीब-ए-अर्ज़ तो शायद तकद्दुर-ए-अज़ली है
शफ़ीक़ फातिमा शेरा
नज़्म
भूल जाऊँ तिरी ख़ुशबू तिरी क़ुर्बत तिरा लम्स
सोज़-ए-हिज्राँ से फ़सुर्दा रहूँ रंजूर रहूँ