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नज़्म
एशिया वाले हैं इस नुक्ते से अब तक बे-ख़बर
फिर सियासत छोड़ कर दाख़िल हिसार-ए-दीं में हो
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
फ़हमीदा रियाज़
नज़्म
मंतक़ी काँटे पे रखता है कलाम-ए-दिल-पज़ीर
काश इस नुक्ते को समझे तेरी तब-ए-हर्फ़-गीर
जोश मलीहाबादी
नज़्म
अहमद नदीम क़ासमी
नज़्म
हैं ब-ज़ोम-ए-ख़ुद मुहक़क़िक़ आप हिन्दोस्तान के
आप ने नुक़्ते गिने हैं 'मीर' के दीवान के
रज़ा नक़वी वाही
नज़्म
तुम्हारे नाम के नुक़्ते ये ख़ूब-रू नुक़्ते
बनाए हैं जो तुम्हारे क़लम ने काग़ज़ पर
प्रेम वारबर्टनी
नज़्म
लहू नुक़्ते पे जम जाए तो उन्वान-ए-सफ़र ठहरे
उसी रस्ते पे सरकश रौशनी तारों में ढलती है