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नज़्म
उसे सब वहम कहते हैं ख़िलाफ़-ए-अक़्ल कहते हैं
मगर पक्का यक़ीं है जब कोई टूटा हुआ तारा
अबु बक्र अब्बाद
नज़्म
होंट कँवल अब भी वैसे पर शादाबी कुछ कम कम थी
पक्के फलों का बोझ उठाए जिस्म तना बल खाता था