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नज़्म
ये रक़्स-ए-आफ़रीनश है कि शोर-ए-मर्ग है ऐ दिल
हवा कुछ इस तरह पेड़ों से मिल मिल कर गुज़रती है
उबैदुर्रहमान आज़मी
नज़्म
अब्र के टुकड़े नट-खट लड़कों जैसे घूम रहे हैं
पानी की बौछारें खा कर पौदे झूम रहे हैं