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नज़्म
फ़र्ज़ करो हम अहल-ए-वफ़ा हों, फ़र्ज़ करो दीवाने हों
फ़र्ज़ करो ये दोनों बातें झूटी हों अफ़्साने हों
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
गुल से अपनी निस्बत-ए-देरीना की खा कर क़सम
अहल-ए-दिल को इश्क़ के अंदाज़ समझाने लगीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
आओ ऐ अहल-ए-ख़िरद अहल-ए-जुनूँ अहल-ए-ज़मीं
बज़्म-ए-हस्ती में मोहब्बत से चराग़ाँ कर दें
दर्शन सिंह
नज़्म
क़ुलूब अहल-ए-ज़मीं के उस की मुट्ठी में धड़कते हैं
शुऊ'र उस का सदा मामूर रहता है