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नज़्म
एक आवाज़ थी: दूरियों से बुलाती हुई
एक आवाज़ थी, दूर के इक अकेले पहाड़ी नगर के अनोखे से मंज़र
कुमार पाशी
नज़्म
हैवानी ढाँचे सालिम और अधूरे सब चुप-चाप हैं
दूर पहाड़ी के पीछे नूर का लावा उबल रहा है
क़ाज़ी सलीम
नज़्म
बे-कस चमेली फूले अकेली आहें भरे दिल-जली
भूरी पहाड़ी ख़ाकी फ़सीलें धानी कभी साँवली