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नज़्म
ऐ कराची ये बता अब किस से मिलने आऊँगी
किस की बाँहों में सिमट कर चैन ओ सुख मैं पाऊँगी
शहनाज़ परवीन शाज़ी
नज़्म
मिरे दिल की फ़सुर्दा ख़ल्वतों में जा न पाएँगी
ये अश्कों की फ़रावानी से धुँदलाई हुई आँखें
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
तुम मिरी हो कर भी बेगाना ही पाओगी मुझे
मैं तुम्हारा हो के भी तुम में समा सकता नहीं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
आज क्यूँ मैं भी उसी तरह रुलाऊँ न तुम्हें
देख पाएँगी न जिस रुख़ को तुम्हारी आँखें
प्रेम वारबर्टनी
नज़्म
मैं मुक़द्दर से गले मिल के नहीं रो सकता
तुझ को पाना मिरा मक़्सद है तुझे पाऊँगा