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नज़्म
ख़ैर अब हम मुतमइन यूँ हैं कि जान-ए-आरज़ू
हम ने कुछ खो भी दिया है और कुछ पाया भी है
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
दो-जहाँ में है लक़ब ख़ामा-ए-क़ुदरत तेरा
अल्लह अल्लाह ये है पाया-ए-रिफ़अत तेरा
मास्टर बासित बिस्वानी
नज़्म
ले के नाम अल्लाह का तूफ़ाँ में कश्ती डाल दे
ख़ौफ़-ए-बे-पायानी-ए-दरिया-ए-मौज-अफ़ज़ा न कर
ज़फ़र अली ख़ाँ
नज़्म
ये साज़ ओ दिल में मिरे नग़्मा-ए-अनलकौनैन
हर इज़्तिराब में रूह-ए-सुकून-ए-बे-पायाँ
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
बढ़ रहा है सूरत-ए-सैलाब लोगों का हुजूम
हर दुकाँ पर गाहकों का शोर-ओ-ग़ुल है बिल-उमूम
मोहम्मद सिद्दीक़ मुस्लिम
नज़्म
ग़ौर कीजे कैसे इस तालीम ने पाया रिवाज
किस लिए हामी थे इस के साहिबान-ए-तख़्त-ओ-ताज