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नज़्म
वो इल्म में अफ़लातून सुने वो शेर में तुलसीदास हुए
वो तीस बरस के होते हैं वो बी-ए एम-ए पास हुए
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
हम अहल-ए-ए'तिबार कितने बद-नसीब लोग हैं
किसी से भी तो क़र्ज़-ए-आबरू अदा नहीं हुआ
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
मैं ने पूछा प्यार करने वालों का शेवा है क्या
चीख़ कर उस ने कहा पास-ए-वफ़ा पास-ए-वफ़ा
सदा अम्बालवी
नज़्म
बिर्ज लाल रअना
नज़्म
रूठने वाले ब-पास-ए-वक़्त-ओ-आदाब-ए-शबाब
पिछली बातें भूल जाने का ज़माना आ गया