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नज़्म
तितलियाँ अपने परों पर पा के क़ाबू हर तरफ़
सेहन-ए-गुलशन की रविश पर रक़्स फ़रमाने लगीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
तेरे क़ब्ज़े में है गर्दूं तिरी ठोकर में ज़मीं
हाँ उठा जल्द उठा पा-ए-मुक़द्दर से जबीं
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
ख़ाक-ए-सहरा पे जमे या कफ़-ए-क़ातिल पे जमे
फ़र्क़-ए-इंसाफ़ पे या पा-ए-सलासिल पे जमे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
है दाख़िल फ़ितरत-ए-मुनइ'म में नादारों को तड़पाना
सर-ए-पा-ए-हिक़ारत से हर इक बेकस को ठुकराना
टीका राम सुख़न
नज़्म
ख़म जबीं होती है उस की नक़्श-ए-पा-ए-दोस्त पर
और झुक जाते हैं उस के पाँव पर दोनों जहाँ
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
सज्दा-रेज़ी के लिए इस रहगुज़र में ऐ जबीं
नक़्श-ए-पा-ए-दोस्त की तक़लीद होनी चाहिए
मयकश अकबराबादी
नज़्म
सज्दा-रेज़ी के लिए इस रहगुज़र में ऐ जबीं
नक़्श-ए-पा-ए-दोस्त की तक़लीद होनी चाहिए
मैकश हैदराबादी
नज़्म
ख़िज़्र की बेजा ख़ुशामद ही मुक़द्दम है यहाँ
वस्ल-ए-मंज़िल के लिए पा-ए-जुनूँ शर्त नहीं
ज़हीर सिद्दीक़ी
नज़्म
अवाम की ख़िदमत और इस्लाह हमारा मिशन है
अगर इस मिशन को पा-ए-तकमील तक पहुँचाने के दौरान
शौकत आबिदी
नज़्म
अज़ीज़ क़ैसी
नज़्म
बज़्म से गुज़रा कमाल-ए-फ़क़्र दिखलाता हुआ
ताज-ए-शाही पा-ए-इस्ति़ग़ना से ठुकराता हुआ