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नज़्म
पत्ता पत्ता मिरे अफ़्सुर्दा लहू में धुल कर
हुस्न-ए-महताब से आज़ुर्दा नज़र आने लगा
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
अब इस बस्ती में रखते ही क़दम कुछ ऐसा लगता है
कि इस का ज़र्रा ज़र्रा पत्ता पत्ता कुछ नया सा है
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
कोई पत्ता भी नहीं हिलता, न पर्दों में है जुम्बिश
फिर भी कानों में बहुत तेज़ हवाओं की सदा है
गुलज़ार
नज़्म
ठंडी पुर्वा काला बादल बरसा तो बरसता जाता है
बूंदों की मुसलसल चोटों से पत्ता पत्ता थर्राता है
नुशूर वाहिदी
नज़्म
वो गर्दन वो बाहें वो रानें वो पिस्ताँ
कि जिन में जुनूबी समुंदर की लहरों के तूफ़ाँ
नून मीम राशिद
नज़्म
पत्ता गिरता है तो पत्थर सा लुढ़क जाता है
शाख़ें हाथों में लिए कितनी अधूरी कलियाँ
अहमद नदीम क़ासमी
नज़्म
हर रात मेरी आत्मा अपनी पहचान खोती है
मेरी माँ का भी तो यही काम था नहीं जानती मेरे पिता का क्या नाम था
अंकिता गर्ग
नज़्म
रंग बिरंगी चिड़ियाँ अब छेड़ें ऐसी क़व्वाली
पत्ता पत्ता बूटा बूटा ताल में देवे ताली