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नज़्म
जिन्हें मुतरिबों ने चाहा कि सदाओं में पिरो लें
जिन्हें शाइ'रों ने चाहा कि ख़याल में समो लें
साहिर लुधियानवी
नज़्म
हमें बंद कमरों में क्यूँ पिरो दिया गया है
एक दिन की उम्र वाले तो अभी दरवाज़ा ताक रहे हैं
सारा शगुफ़्ता
नज़्म
वो फूलों के गजरे जो तुम कल शाम पिरो कर लाई थीं
वो कलियाँ जिन से तुम ने ये रंगीं सीजें महकाई थीं
मजीद अमजद
नज़्म
ज़ंजीर-ओ-सलासिल में पिरो कर साहिब-ए-क़स्र-ए-हशम के सामने लाया गया है
पहरा-वारों ने दरीचे
अय्यूब ख़ावर
नज़्म
जिस तरह हाथ की पोरों पे कभी
पहले पहले से किसी तजरबा-ए-लम्स-ए-मोहब्बत का असर खुलता है