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नज़्म
टोपी पुरानी दो तो वो जाने कुलाह-ए-जिस्म
क्यूँकर न जी को उस चमन-ए-हुस्न के हो ग़म
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
लेकिन मैं तो इक मुंशी हूँ तू ऊँचे घर की रानी है
ये मेरी प्रेम-कहानी है और धरती से भी पुरानी है